ख्वाहिशों की मौत-3
"अच्छा स्टेशन बाबू एक बात बताओ, इस सिरोही (राजस्थान) से उड़ीसा कितनी दूर होगा। कितना समय लगता होगा वहां तक जाने में............. यदि किसी को तुरंत आना- जाना होगा????? क्या वह आ जा सकता है ना"???? "जाने कितने सवाल एक साथ दिनेश के पिता ने स्टेशन मास्टर को सुना दिए। उनकी उत्सुकता, आतुरता को जानते हुए उसे थोड़ी तेजी हवा देने, छेड़ते हुए स्टेशन मास्टर ने कहा....... क्या माली बाबू जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) जाना है क्या???? या और कोई बात है"???? हमें मिठाई खिलाई नहीं तो, भला हम क्यों बताएं। हम कौन सा सैलरी मांग रहे थे..
"कब के टिकट बना गए चौधरी साहब.....हम बता दिए थे कि तुम झूठे ही स्टेशन तक आते हो और बिना टिकट वापस जाकर कह दे रहे हो कि स्टेशन मास्टर नहीं मिला, जानता हूं मैं आपके पुत्र मोह को, होता है हमारे पिता ने भी ऐसा ही किया था"। "बेटा चला स्टेशन मास्टर बनने और बापू उसी को घुमा रहे थे। हम भी जानबूझकर कुछ दिन ऐसे ही गांव घूम लिए। फिर क्या कब तक रहते आना पड़ा ना छोड़कर"। "देखिए आज सब कुछ ठीक है। बैठे चाय पिलाता हूं। ऐसा लगा जैसे किसी ने उनकी दुगती रग पर हाथ रख दिया हो। वह कसमकाकर बैठ गए"। हां....हम आए तो थे आप मिले ही नहीं दोबारा तो कह दिए.. स्टेशन मास्टर मुस्कुरा कर बोला, अच्छा हम तो तीन तीन बार नमस्कार भी किए"। "अब तो उनके पिता से रहा नहीं गया, अब वह कसमकाकर कर बैठ गए। चाय पीते हुए स्टेशन मास्टर ने उन्हें अनेकों उदाहरण दिए और वह सिर्फ हां.. नहीं... हां.. नहीं.... में सिर हिलाते रहे"।
"उनका मान अभी भी कोयले की खान बेटे में को अकेला भेजना.... इन सभी बातों को लेकर दुख में डूबा हुआ था"। ऐसा लग रहा था जैसे मृत्यु पश्चात भगवान मृत आत्मा को बैठकर गरुड़ पुराण का पाठ पढ़ाते हो........ "इतना पुत्र मोह कि वह कुछ मानने को तैयार ही नहीं था। लेकिन अंत में जब स्टेशन मास्टर बोले.... तो ठीक है, रख लो, बेटे को.... बना दो किसान.... ससुरा हम सोच रहे थे। गांव का बेटा अफसर बनकर नाम कमाएगा, चार लड़के उसको देखकर और प्रोत्साहित होंगे और शायद वह भी अफसर बन जाए"! "लेकिन आप हैं कि अपने पुत्र मोह में उसे किसान बनाने पर तुले हैं। जब यही करना था तो काहे हड्डी तोड़ कर कालेज पहुंचाए.....काहे इतनी पढ़ाई करवाएं......
"हम जो बिहार से यहां तक आकर बैठे हैं, तो क्या छोड़ दिए मां-बाप को या फिर उनको कोई तकलीफ है। ऐसा लग रहा था जैसे स्टेशन मास्टर बरसों पुरानी अपनी भड़ास निकाल रहे.......... दिनेश के पिता हां तो भेज तो रहा हूं ना भाई...... मैंने कब अफसर बनने से मना किया। इतना बोलते हुए हाथ जोड़कर स्टेशन से बाहर आ गए, चले जा रहे थे गांव की ओर, कि अब घर जाकर क्या जवाब देंगे??? कि पिछले दो दिनों से स्टेशन मास्टर का बहाना बनाकर वह बेटे को रोकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे"।
"यही सोचते हुए जाते समय अपनी मूर्खता पर गुस्सा और बेटे का प्यार स्पष्ट झलकने लगा और शायद इसी बात का शिकार वह बेचारा कुत्ता हो गया, जो स्टेशन से थोड़ी दूर तक उनके साथ आ गया था"। "उन्होंने अपने गुस्से का कुछ अंश उस कुत्ते पर उतारते हुए उसकी जोरदार धुनाई कर दी। गुस्सा किस बात का था, सभी इस बात को समझ गए"।
"जब वह कुत्ते को मारते हुए कह रहे थे जा साले तू भी चला जा........ अब काहे पीछे आता है जो था सब तो खिला दिया.....आप क्या सिर बैठना चाहूं... "पहले कुत्ते को मारा और फिर उसे भगाने पर एक अंतिम पत्थर पास का उठाकर उसकी ओर उछाल फेंका। लेकिन इस सावधानी से की गई उसे लग ना जाए"। जैसे वह सिर्फ उसे भगाना चाहता था ना कि उसे मारना... नहीं तो इतने संभलकर वह पत्थर ना फेंकता.....
क्रमशः .....
Gunjan Kamal
17-Nov-2023 05:45 PM
👏👌
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